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बेटे की प्रोपर्टी में मां का कितना अधिकार, या सबकुछ पत्नी को मिलेगा, जान लें कानून property rights act

By Meera Sharma

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property rights act

property rights act: परिवार में मां की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। वह अपना पूरा जीवन अपने बच्चों के पालन-पोषण और उनकी बेहतरी के लिए समर्पित कर देती है। बेटे के जन्म से लेकर उसकी शादी तक मां की ममता और त्याग का कोई मोल नहीं होता। लेकिन जब संपत्ति के अधिकारों की बात आती है तो कई बार मां को अपने ही बेटे की संपत्ति में अधिकार को लेकर संशय में रहना पड़ता है।

भारतीय समाज में यह एक आम धारणा है कि बेटे की शादी के बाद उसकी सारी संपत्ति पर केवल उसकी पत्नी और बच्चों का ही अधिकार होता है। कई मांएं यह सोचकर चुप रह जाती हैं कि अब सब कुछ बहू का है और उनका कोई हक नहीं बचा। यह सोच न केवल गलत है बल्कि कानूनी रूप से भी निराधार है। आधुनिक कानून में मां के अधिकारों को स्पष्ट रूप से संरक्षित किया गया है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में मां के अधिकार

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हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार मां का अपने बेटे की संपत्ति में कानूनी अधिकार होता है। यह अधिकार इस बात पर निर्भर नहीं करता कि बेटा विवाहित है या अविवाहित। कानून में स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि बेटे की मृत्यु की स्थिति में उसकी संपत्ति के वितरण में मां एक महत्वपूर्ण वारिस होती है।

यह कानून महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि मां को उसके योगदान और त्याग के बदले उचित सम्मान मिले। अधिनियम की धारा 8 में इस विषय पर विस्तृत दिशा-निर्देश दिए गए हैं। यह कानूनी ढांचा न केवल मां के आर्थिक अधिकारों की रक्षा करता है बल्कि सामाजिक न्याय भी सुनिश्चित करता है। मां को अपने इन अधिकारों की जानकारी रखनी चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर इनका उपयोग करने से हिचकना नहीं चाहिए।

अविवाहित बेटे की संपत्ति में मां की प्राथमिकता

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यदि कोई अविवाहित बेटा अपनी मृत्यु के समय कोई वसीयत नहीं छोड़ता तो उसकी संपत्ति में सबसे पहला अधिकार उसकी मां का होता है। कानून में मां को प्रथम श्रेणी की वारिस माना गया है। इसके बाद पिता का स्थान आता है। यह व्यवस्था इस तथ्य को स्वीकार करती है कि मां का बेटे के जीवन में योगदान सर्वाधिक होता है।

अविवाहित बेटे के मामले में यदि मां जीवित नहीं है तो संपत्ति का अधिकार पिता को मिलता है। यदि दोनों माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है तो संपत्ति अन्य कानूनी वारिसों जैसे भाई-बहन को मिलती है। यह व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि संपत्ति परिवार में ही रहे और मां के योगदान को उचित महत्व मिले। अविवाहित बेटे की संपत्ति में मां का यह अधिकार पूर्ण और निर्विवाद होता है।

विवाहित बेटे की संपत्ति में मां का हिस्सा

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विवाहित बेटे की संपत्ति के मामले में स्थिति थोड़ी अलग होती है लेकिन मां का अधिकार फिर भी सुरक्षित रहता है। यदि विवाहित बेटे की मृत्यु हो जाती है और वह कोई वसीयत नहीं छोड़ता तो उसकी संपत्ति का बंटवारा उसकी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के बीच समान रूप से होता है। इसका मतलब यह है कि मां को उतना ही हिस्सा मिलता है जितना बेटे की पत्नी को मिलता है।

यह एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो यह सुनिश्चित करता है कि मां को उसके बेटे की संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। यदि बेटे की पत्नी और बच्चे जीवित हैं तो संपत्ति को सभी के बीच बराबर बांटा जाता है। यह व्यवस्था न्यायसंगत है क्योंकि यह सभी के योगदान और रिश्ते की महत्ता को मानती है। मां का यह अधिकार कानूनी रूप से संरक्षित है और कोई भी इसे नकार नहीं सकता।

वसीयत की स्थिति में मां के अधिकार

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यदि बेटा अपनी मृत्यु से पहले वसीयत लिख देता है तो संपत्ति का वितरण वसीयत के अनुसार होगा। लेकिन भारतीय कानून में यह प्रावधान है कि वसीयत में भी निकटतम रिश्तेदारों को पूरी तरह से वंचित नहीं किया जा सकता। यदि वसीयत में मां को कुछ नहीं दिया गया है तो वह इसे अदालत में चुनौती दे सकती है।

न्यायालय ऐसे मामलों में यह देखता है कि क्या वसीयत न्यायसंगत है और क्या इसमें निकटतम रिश्तेदारों के साथ अन्याय तो नहीं हुआ है। मां अपने कानूनी अधिकारों के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है। कई बार पारिवारिक दबाव या भावनात्मक कारणों से मांएं अपने अधिकारों का दावा नहीं करतीं लेकिन कानूनी रूप से उनका यह हक सुरक्षित होता है।

व्यावहारिक चुनौतियां और समाधान

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सिद्धांत रूप में मां के अधिकार स्पष्ट हैं लेकिन व्यावहारिक स्तर पर कई चुनौतियां आती हैं। कई बार पारिवारिक रिश्तों को बिगाड़ने के डर से मांएं अपने अधिकारों का दावा नहीं करतीं। बहू और पोते-पोतियों के साथ संबंध खराब होने का भय उन्हें चुप रहने पर मजबूर करता है। लेकिन यह समझना जरूरी है कि कानूनी अधिकार का मतलब यह नहीं है कि पारिवारिक रिश्ते बिगड़ जाएं।

आदर्श स्थिति यह होगी कि परिवार के सदस्य आपस में बैठकर संपत्ति के बंटवारे पर सहमति बनाएं। मां के योगदान और अधिकारों को स्वीकार करते हुए एक न्यायसंगत व्यवस्था की जा सकती है। यदि आपसी बातचीत से समाधान नहीं निकलता तो कानूनी सहायता लेने में कोई हर्ज नहीं है। मां को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर इनका उपयोग करना चाहिए।

सामाजिक दृष्टिकोण में आवश्यक बदलाव

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समाज में यह धारणा बदलने की जरूरत है कि शादी के बाद मां का अपने बेटे पर कोई अधिकार नहीं रह जाता। मां का प्रेम, त्याग और योगदान जीवन भर चलता रहता है और उसे उचित सम्मान मिलना चाहिए। बहू के घर आने का मतलब यह नहीं है कि मां को किनारे कर दिया जाए। एक संतुलित और न्यायसंगत दृष्टिकोण अपनाने से पारिवारिक सामंजस्य बना रह सकता है।

कानूनी जागरूकता बढ़ाना भी आवश्यक है ताकि महिलाएं अपने अधिकारों को समझ सकें। शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं को उनके संपत्ति अधिकारों की जानकारी दी जानी चाहिए। परिवारजनों को भी समझना चाहिए कि मां के अधिकारों का सम्मान करना न केवल कानूनी दायित्व है बल्कि नैतिक धर्म भी है। एक खुशहाल परिवार वही होता है जहां सभी के अधिकारों का सम्मान हो और कोई भी भेदभाव न हो।

Disclaimer

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यह लेख सामान्य कानूनी जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। संपत्ति अधिकार जटिल विषय हैं और व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। किसी भी कानूनी मामले में निर्णय लेने से पहले योग्य वकील से सलाह अवश्य लें। लेखक या प्रकाशक किसी भी कानूनी समस्या के लिए जिम्मेदार नहीं है।

Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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