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पिता की प्रोपर्टी में बेटा बेटी का कितना कम ज्यादा अधिकार, दावा करने से पहले पता होना चाहिए कानून property rights

By Meera Sharma

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property rights

property rights: आज के समय में पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद एक आम समस्या बन गई है। रोजाना अदालतों में ऐसे मामले आते हैं जहां भाई-बहन के बीच पिता की संपत्ति को लेकर कानूनी लड़ाई चल रही होती है। यह स्थिति न केवल पारिवारिक रिश्तों को खराब करती है बल्कि वर्षों तक चलने वाली न्यायालयीन प्रक्रिया में समय और पैसा भी बर्बाद होता है। समस्या की मुख्य वजह यह है कि अधिकतर लोगों को संपत्ति के अधिकार से जुड़े कानूनी नियमों की सही जानकारी नहीं है।

भारतीय कानूनी व्यवस्था में संपत्ति के अधिकार को लेकर स्पष्ट नियम बनाए गए हैं, लेकिन इन नियमों की जानकारी न होने के कारण लोग अपने वैध अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। खासकर महिलाओं के साथ यह स्थिति अधिक देखने को मिलती है, जहां सामाजिक परंपराओं के नाम पर उन्हें उनके कानूनी अधिकारों से वंचित रखा जाता है। इसलिए यह जानना आवश्यक है कि पिता की संपत्ति में बेटे और बेटी के क्या अधिकार हैं और किस स्थिति में यह अधिकार बदल जाते हैं।

संपत्ति के दो मुख्य प्रकार

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भारतीय कानूनी व्यवस्था में संपत्ति को मुख्यतः दो श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी में वह संपत्ति आती है जो व्यक्ति ने स्वयं अर्जित की है। इसमें वह जमीन, मकान या अन्य संपत्ति शामिल है जो व्यक्ति ने अपनी मेहनत से खरीदी है, किसी से उपहार में पाई है, दान के रूप में प्राप्त की है या किसी अन्य व्यक्ति के त्यागपत्र से मिली है। इस प्रकार की संपत्ति को स्वयं अर्जित संपत्ति कहा जाता है और इस पर व्यक्ति का पूर्ण अधिकार होता है।

दूसरी श्रेणी में पैतृक संपत्ति आती है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है। यह वह संपत्ति है जो व्यक्ति को अपने पिता, दादा या पूर्वजों से विरासत में मिली है। पैतृक संपत्ति की परिभाषा के अनुसार, यह वह संपत्ति है जो कम से कम तीन पीढ़ियों से परिवार में चली आ रही हो। इन दोनों प्रकार की संपत्तियों के लिए अलग-अलग कानूनी नियम हैं और इसी के अनुसार बेटे-बेटी के अधिकार भी तय होते हैं।

स्वयं अर्जित संपत्ति पर पिता के अधिकार

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स्वयं अर्जित संपत्ति के मामले में पिता को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम और संपत्ति अंतरण अधिनियम के अनुसार, व्यक्ति अपनी स्वयं अर्जित संपत्ति को बेचने, दान देने, किसी को उपहार में देने या किसी भी प्रकार का अंतरण करने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र है। इस संपत्ति के संबंध में लिए जाने वाले निर्णयों में किसी भी व्यक्ति का हस्तक्षेप नहीं हो सकता, चाहे वह उसके बेटे हों या बेटी।

यदि पिता अपनी स्वयं अर्जित संपत्ति की वसीयत बनाता है और उसमें किसी विशिष्ट व्यक्ति को संपत्ति देने का निर्णय लेता है, तो यह पूर्णतः वैध होता है। इस स्थिति में यदि बच्चे न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं, तो अदालत पिता के निर्णय को ही मान्यता देती है, बशर्ते कि वसीयत सभी कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करती हो। यह नियम इसलिए बनाया गया है क्योंकि स्वयं अर्जित संपत्ति पर व्यक्ति का निजी अधिकार होता है और वह इसे अपनी इच्छा के अनुसार उपयोग कर सकता है।

स्वयं अर्जित संपत्ति में बच्चों के अधिकार

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हालांकि स्वयं अर्जित संपत्ति पर पिता का पूर्ण अधिकार होता है, लेकिन एक महत्वपूर्ण स्थिति है जब बच्चों को इस संपत्ति में अधिकार मिल जाता है। यदि पिता की मृत्यु बिना किसी वसीयत के हो जाती है, तो स्वयं अर्जित संपत्ति भी उत्तराधिकार के नियमों के अंतर्गत आ जाती है। इस स्थिति में बेटे और बेटी दोनों को संपत्ति में बराबर का अधिकार मिलता है। यह नियम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कई बार लोग वसीयत बनाने में देरी करते हैं और अचानक मृत्यु की स्थिति में परिवारजनों को कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

इसलिए यह सलाह दी जाती है कि व्यक्ति को अपनी इच्छा के अनुसार अपनी स्वयं अर्जित संपत्ति की वसीयत समय रहते बना लेनी चाहिए। वसीयत न केवल भविष्य के विवादों को रोकती है बल्कि व्यक्ति की इच्छाओं का भी सम्मान करती है। वसीयत बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि यह सभी कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करे और उचित गवाहों की उपस्थिति में तैयार की जाए।

धर्म के आधार पर अलग नियम

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भारत में संपत्ति के अधिकार धर्म के आधार पर भी अलग-अलग हैं। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार, हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन धर्म के लोगों के लिए बेटे और बेटी दोनों को पिता की संपत्ति में बराबर अधिकार प्राप्त है। यह एक प्रगतिशील कानून है जो लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है। हालांकि सामाजिक परंपराओं के कारण कई बेटियां अपने इस अधिकार का प्रयोग नहीं करतीं, लेकिन कानूनी रूप से उन्हें पूरा अधिकार है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत पारंपरिक रूप से बेटों को अधिक अधिकार दिए गए हैं। इस्लामिक शरीयत के अनुसार बेटे को बेटी के मुकाबले दोगुना हिस्सा मिलता है। लेकिन आधुनिक न्यायिक व्यवस्था और संविधान के समानता के सिद्धांत के कारण इस क्षेत्र में भी बदलाव की मांग बढ़ रही है। कई न्यायाधीशों ने अपने फैसलों में इस बात पर जोर दिया है कि सभी धर्मों की महिलाओं को बराबर अधिकार मिलने चाहिए।

पैतृक संपत्ति के विशेष नियम

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पैतृक संपत्ति के मामले में नियम बिल्कुल अलग हैं। इस संपत्ति पर पिता का एकमात्र अधिकार नहीं होता और वह इसकी मनमानी वसीयत नहीं बना सकता। पैतृक संपत्ति में बेटे और बेटी दोनों का जन्म से ही अधिकार होता है। यह अधिकार पिता की इच्छा पर निर्भर नहीं होता बल्कि कानूनी रूप से निर्धारित होता है। पैतृक संपत्ति को बेचने, बांटने या किसी भी प्रकार का अंतरण करने के लिए सभी हकदारों की सहमति आवश्यक होती है।

2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए थे। इस संशोधन के बाद बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार मिल गए। पहले बेटियों को पैतृक संपत्ति में सीमित अधिकार थे, लेकिन अब यह भेदभाव समाप्त हो गया है। यह संशोधन महिला अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था और इसने लैंगिक न्याय को बढ़ावा दिया।

व्यावहारिक समस्याएं और समाधान

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कानूनी अधिकार होने के बावजूद भी व्यावहारिक रूप में कई समस्याएं आती हैं। सामाजिक दबाव, पारिवारिक परंपराएं और कभी-कभी अशिक्षा के कारण महिलाएं अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पातीं। इसके अलावा संपत्ति के दस्तावेजों में पारदर्शिता की कमी भी एक बड़ी समस्या है। कई बार परिवार के पुरुष सदस्य महिलाओं को संपत्ति के विवरण से अवगत नहीं कराते।

इन समस्याओं के समाधान के लिए सबसे पहले जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। महिलाओं को अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए। परिवार में खुली चर्चा होनी चाहिए और सभी संपत्ति के दस्तावेज पारदर्शी रूप से सभी सदस्यों के साथ साझा किए जाने चाहिए। जरूरत पड़ने पर कानूनी सलाह लेने में भी हिचक नहीं करनी चाहिए।

संपत्ति के अधिकार एक जटिल विषय है जिसमें कानूनी, सामाजिक और पारिवारिक सभी पहलू शामिल हैं। स्वयं अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति के लिए अलग-अलग नियम हैं और इन्हें समझना आवश्यक है। आधुनिक कानूनी व्यवस्था में बेटे और बेटी को बराबर अधिकार दिए गए हैं, लेकिन इसके लिए जागरूकता और सामाजिक बदलाव की भी आवश्यकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पारिवारिक संपत्ति के मामले में पारदर्शिता और खुली चर्चा होनी चाहिए ताकि भविष्य में विवाद न हों और सभी को अपने वैध अधिकार मिल सकें।

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Disclaimer

यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है। संपत्ति के अधिकार और उत्तराधिकार के कानून जटिल होते हैं और विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग नियम लागू हो सकते हैं। व्यावहारिक मामलों में हमेशा योग्य कानूनी सलाहकार से सलाह लें। विभिन्न धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ लागू होते हैं जिनकी विस्तृत जानकारी आवश्यक है। लेखक या प्रकाशक इस जानकारी के उपयोग से होने वाले किसी भी कानूनी परिणाम के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे।

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Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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