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प्रोपर्टी बंटवारे में जीजा कर सकता है बड़ा खेल, जानिये संपत्ति बंटवारे का कानून property division rules

By Meera Sharma

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property division rules

property division rules: भारतीय कानून व्यवस्था में माता-पिता की संपत्ति पर सभी संतानों का समान अधिकार होता है। यह अधिकार बेटे-बेटी के बीच किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करता और दोनों को बराबर का हिस्सा देता है। जब माता-पिता की मृत्यु बिना वसीयत के हो जाती है तो उनकी संपत्ति पर सभी संतानों का प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी के रूप में कानूनी अधिकार स्थापित हो जाता है। यह नियम किसी भी धर्म या जाति के भेदभाव के बिना सभी पर लागू होता है।

कानूनी दृष्टि से देखा जाए तो संपत्ति के बंटवारे में लिंग के आधार पर कोई अंतर नहीं किया जा सकता। माता-पिता की संपत्ति में बेटी का हक उतना ही मजबूत है जितना कि बेटे का होता है। यदि माता-पिता ने अपने जीवनकाल में किसी विशेष व्यक्ति के नाम संपत्ति नहीं की है तो सभी संतानों को समान भागीदारी मिलती है। यह व्यवस्था संविधान के समानता के सिद्धांत पर आधारित है।

संपत्ति बंटवारे में दबाव की अवैधता

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पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे के दौरान कई बार सामाजिक दबाव या पारिवारिक परंपराओं के नाम पर बेटी को अपने हिस्से से वंचित करने का प्रयास किया जाता है। लेकिन कानूनी तौर पर कोई भी व्यक्ति बेटी पर यह दबाव नहीं बना सकता कि वह अपने हिस्से की संपत्ति छोड़ दे। यदि बेटी स्वेच्छा से अपना हिस्सा भाई को देना चाहती है तो यह उसका व्यक्तिगत निर्णय है, लेकिन इसके लिए किसी प्रकार का बल प्रयोग या दबाव अवैध है।

कई मामलों में देखा गया है कि पारंपरिक सोच के कारण बेटियों को संपत्ति से वंचित रखा जाता है। यह प्रथा न केवल गैरकानूनी है बल्कि महिलाओं के मौलिक अधिकारों का भी हनन है। न्यायपालिका ने कई अवसरों पर यह स्पष्ट किया है कि संपत्ति के मामले में लिंग के आधार पर भेदभाव संविधान के विरुद्ध है। इसलिए बेटी का संपत्ति में हक उतना ही वैध और मजबूत है जितना कि परिवार के किसी अन्य सदस्य का होता है।

बंटवारे में सभी हिस्सेदारों की सहमति का महत्व

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संपत्ति के बंटवारे की प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी हिस्सेदारों की सहमति आवश्यक होती है। जब पारिवारिक संपत्ति के रिकॉर्ड में कई लोगों के नाम दर्ज होते हैं तो बंटवारे के लिए उन सभी की रजामंदी जरूरी होती है। यदि आपसी सहमति से बंटवारा नहीं हो पाता तो मामला सिविल कोर्ट या एसडीएम कोर्ट में पहुंचता है। न्यायालय में संपत्ति के दस्तावेजों और कानूनी प्रावधानों के आधार पर बंटवारा निर्धारित किया जाता है।

न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अदालत सभी पक्षों की बात सुनती है और कानूनी अधिकारों के आधार पर निर्णय लेती है। इस दौरान किसी भी हिस्सेदार को अनुचित लाभ या नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता। कोर्ट का मुख्य उद्देश्य न्याय के सिद्धांत पर आधारित एक निष्पक्ष बंटवारा करना होता है। यही कारण है कि यदि पारिवारिक स्तर पर समझौता नहीं हो पाता तो न्यायिक सहारा लेना सबसे उचित विकल्प माना जाता है।

विवाहित बेटी के संपत्ति अधिकार

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विवाह के बाद भी बेटी का अपने माता-पिता की संपत्ति में कानूनी अधिकार बना रहता है। शादी के बाद बेटी का नाम बदल जाना या उसका दूसरे परिवार में चले जाना उसके संपत्ति अधिकारों को समाप्त नहीं करता। यह एक महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु है जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते हैं। विवाहित बेटी अपने मायके की संपत्ति में हिस्सा मांग सकती है और यह उसका वैध अधिकार है।

हालांकि व्यावहारिक रूप से कई बार विवाहित बेटी स्वयं अपने हिस्से की मांग नहीं करती या सामाजिक दबाव के कारण अपने अधिकार से पीछे हट जाती है। लेकिन कानूनी दृष्टि से उसका अधिकार उतना ही मजबूत रहता है जितना विवाह से पहले था। न्यायालयों ने कई मामलों में यह स्पष्ट किया है कि विवाह किसी महिला के पैतृक संपत्ति के अधिकार को प्रभावित नहीं करता।

जीजा की भूमिका और उसकी सीमाएं

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संपत्ति के बंटवारे में जीजा की स्थिति एक जटिल पहलू है जिसे समझना आवश्यक है। कानूनी तौर पर जीजा का अपनी पत्नी के मायके की संपत्ति में कोई प्रत्यक्ष अधिकार नहीं होता। वह न तो संपत्ति में हिस्सा मांग सकता है और न ही बंटवारे की प्रक्रिया में कोई कानूनी दखल दे सकता है। संपत्ति का अधिकार पूर्णतः बेटी का व्यक्तिगत अधिकार है और इसमें पति की कोई भागीदारी नहीं होती।

लेकिन व्यावहारिक रूप से जीजा अपनी पत्नी पर दबाव डालकर या प्रभाव बनाकर संपत्ति के मामले में भूमिका निभा सकता है। यदि जीजा अपनी पत्नी को संपत्ति का हिस्सा न लेने के लिए प्रेरित करता है तो यह परोक्ष रूप से बंटवारे को प्रभावित कर सकता है। इसके विपरीत यदि जीजा अपनी पत्नी को संपत्ति के अधिकार के लिए प्रोत्साहित करता है तो यह भी बंटवारे की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। इसलिए पारिवारिक रिश्तों में सामंजस्य बनाए रखना महत्वपूर्ण हो जाता है।

न्यायिक सुरक्षा और समाधान के उपाय

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संपत्ति विवादों के मामले में न्यायपालिका ने महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए मजबूत व्यवस्था बनाई है। यदि किसी महिला को उसके संपत्ति अधिकार से वंचित करने का प्रयास किया जाता है तो वह न्यायालय का सहारा ले सकती है। अदालतें इन मामलों में महिलाओं के पक्ष में सख्त रुख अपनाती हैं और उनके कानूनी अधिकारों की रक्षा करती हैं। पारिवारिक विवादों को सुलझाने के लिए मध्यस्थता और पारिवारिक न्यायालयों की व्यवस्था भी उपलब्ध है जो शांतिपूर्ण समाधान में सहायक होती है।

Disclaimer

यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार किया गया है। संपत्ति कानून जटिल होता है और विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग नियम लागू हो सकते हैं। किसी भी संपत्ति विवाद या कानूनी मामले में निर्णय लेने से पहले योग्य वकील या कानूनी सलाहकार से परामर्श लेना आवश्यक है।

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Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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