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भूमि अधिग्रहण मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, 23 साल बाद जमीन मालिकों को बड़ी राहत supreme court decision

By Meera Sharma

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supreme court decision

supreme court decision: भूमि अधिग्रहण के एक महत्वपूर्ण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जो भू मालिकों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है। यह फैसला 23 साल के लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आया है और इसने भू मालिकों के अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है। इस निर्णय से न केवल इस विशेष मामले के पीड़ित भू मालिकों को न्याय मिला है बल्कि यह भविष्य में होने वाले भूमि अधिग्रहण मामलों के लिए भी एक महत्वपूर्ण मिसाल बनेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट के निर्णय को भी खारिज कर दिया है।

इस मामले में भू मालिकों को काफी अर्से से न्याय का इंतजार था और अब जाकर उन्हें उचित राहत मिली है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि संपत्ति का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इसका हनन नहीं किया जा सकता। यह फैसला उन सभी भू मालिकों के लिए उम्मीद की किरण है जो सरकारी अधिग्रहण के कारण अपनी जमीन खो चुके हैं लेकिन उचित मुआवजा नहीं मिला है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से यह संदेश जाता है कि न्यायपालिका भू मालिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा है कि मुआवजा दिए बिना किसी भी जायदाद से भू मालिक को बेदखल नहीं किया जा सकता। यह एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो भविष्य में सभी भूमि अधिग्रहण मामलों में लागू होगा। इस विशेष मामले में भू मालिकों के साथ यही अन्याय हुआ था जहां उन्हें बिना मुआवजा दिए उनकी भूमि से बेदखल कर दिया गया था। सरकार और अधिकारियों के ढीले रवैये के कारण भू मालिकों को लंबे समय तक उचित मुआवजे का इंतजार करना पड़ा।

न्यायालय ने इस अन्याय को समाप्त करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने पहले भू मालिकों की उस मांग को खारिज कर दिया था जिसमें वे बाजार दर के अनुसार मुआवजा चाहते थे। सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का उपयोग करते हुए यह निर्णय सुनाया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सर्वोच्च न्यायालय भू मालिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित है और किसी भी प्रकार के अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेगा।

नया मुआवजा और समय सीमा

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सुप्रीम कोर्ट ने विशेष भूमि अधिकारी को निर्देश दिया है कि वह बाजार मूल्य के हिसाब से भूमि मालिकों के लिए नया मुआवजा निर्धारित करे। यह मुआवजा वर्तमान बाजार दर के अनुसार होगा न कि पुराने दरों के अनुसार। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह मुआवजा दो महीने के भीतर दिया जाना चाहिए ताकि भू मालिकों को और अधिक इंतजार न करना पड़े। यह समय सीमा निर्धारण दिखाता है कि अदालत इस मामले को गंभीरता से ले रही है।

मुआवजे की नई राशि का निर्धारण करते समय महंगाई दर और समय के साथ बढ़े हुए मूल्यों को ध्यान में रखा जाएगा। यह एक न्यायसंगत व्यवस्था है क्योंकि पिछले 20 वर्षों में भूमि की कीमतों में कई गुना वृद्धि हुई है। भू मालिकों को उस समय के बाजार दर के अनुसार मुआवजा मिलना चाहिए जब वास्तव में भुगतान किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश सुनिश्चित करता है कि न्याय में देरी न्याय से इनकार नहीं बनेगी।

सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

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सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि अधिकारियों के ढीले रवैये के कारण 22 साल से मुआवजा राशि अटकी रही है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि संपत्ति का अधिकार मानवाधिकार में शामिल है और इसे संवैधानिक अधिकार माना गया है। यह टिप्पणी भूमि अधिकारों की महत्ता को रेखांकित करती है और यह संदेश देती है कि इन अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि किसी भी भू मालिक को मुआवजा दिए बिना उसकी संपत्ति से बेदखल करना नियमों और कानून के विरुद्ध है।

यह टिप्पणी सरकारी अधिकारियों के लिए एक चेतावनी भी है कि वे भूमि अधिग्रहण के मामलों को गंभीरता से लें और समय पर उचित कार्रवाई करें। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि प्रशासनिक ढिलाई के कारण किसी को भी नुकसान नहीं उठाना चाहिए। संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देना इस फैसले की सबसे महत्वपूर्ण बात है जो भविष्य के सभी मामलों में लागू होगी।

मामले की पूरी पृष्ठभूमि

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यह भू अधिग्रहण मामला वर्ष 2003 का है जब कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड ने अधिसूचना जारी करके भू मालिकों की भूमि पर 2005 में कब्जा कर लिया था। लेकिन आश्चर्यजनक बात यह थी कि कब्जा लेने के बावजूद भी भू मालिकों को कोई मुआवजा नहीं दिया गया था। यह भूमि बंगलूरू-मैसूर को जोड़ने वाली इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर परियोजना के लिए अधिग्रहीत की गई थी। अपीलकर्ता भू मालिकों ने हाईकोर्ट में बाजार दर के अनुसार मुआवजे की मांग की थी।

जब हाईकोर्ट ने उनकी मांग को नहीं माना तो भू मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने अब भूमि मालिकों को 2019 के बाजार दर के हिसाब से नई मुआवजा राशि तय करके दो महीने में देने के निर्देश दिए हैं। साथ ही कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को भी खारिज कर दिया है। यह मामला दिखाता है कि कैसे प्रशासनिक लापरवाही के कारण न्याय में देरी हो सकती है।

सरकारी अधिकारियों की आलोचना और भविष्य के लिए संदेश

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सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने कर्नाटक सरकार के प्राधिकरण की सुस्त कार्यप्रणाली और ढीले रवैये की कड़ी आलोचना की है। न्यायालय ने कहा कि भू मालिकों की भूमि पर कब्जा लेकर अथॉरिटी ने इसे कंपनी को तो सौंप दिया लेकिन तत्काल कोई मुआवजा नहीं दिया गया। यह दोहरा मापदंड है जो न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि मुआवजा निर्धारण की तारीख को नहीं बदला जाता तो कानून का मजाक ही उड़ता।

2003 से लेकर 2019 तक के लंबे समय तक सरकार और प्रशासन भू मालिकों को मुआवजा देने के लिए सक्रिय नहीं रहे। केवल अवमानना नोटिस जारी होने के बाद ही कार्रवाई की गई जो बेहद शर्मनाक है। न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ताओं को 2003 में ही मुआवजा राशि मिल जाती तो बेहतर होता। यह फैसला भविष्य में सभी सरकारी अधिकारियों के लिए एक संदेश है कि वे भूमि अधिग्रहण के मामलों में तत्परता दिखाएं और भू मालिकों के अधिकारों का सम्मान करें।

Disclaimer

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यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार किया गया है। भूमि अधिग्रहण से संबंधित कानूनी मामलों में राज्यवार अलग नियम हो सकते हैं। किसी भी कानूनी समस्या के लिए योग्य वकील या कानूनी सलाहकार से परामर्श लेना आवश्यक है।

Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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