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मकान मालिक एक साल में कितना किराया बढ़ा सकता है, किराएदार जान लें अपने अधिकार Tenant Rights

By Meera Sharma

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Tenant Rights

Tenant Rights: आज के दौर में रोजगार की तलाश में लाखों लोग अपने गांव और छोटे शहरों को छोड़कर बड़े महानगरों में बसने को मजबूर हैं। इन शहरों में अपना घर खरीदना आम आदमी के लिए एक सपना बन गया है क्योंकि प्रॉपर्टी की कीमतें आसमान छू रही हैं। ऐसी स्थिति में किराए के मकान ही एकमात्र विकल्प बचता है। लेकिन किराएदारों की बढ़ती संख्या के कारण मकान मालिक अक्सर अनुचित फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि कई मकान मालिक बिना किसी ठोस कारण के किराया बढ़ाने की मांग करते हैं।

किराएदारों को अपने अधिकारों की जानकारी न होने के कारण वे मकान मालिकों की मनमानी सहने को मजबूर हो जाते हैं। कई बार तो कुछ महीनों के अंदर ही किराया बढ़ाने की बात कही जाती है जो किराएदार के बजट को पूरी तरह बिगाड़ देती है। ऐसी स्थिति में यह जानना आवश्यक है कि भारत में किराएदारों के क्या अधिकार हैं और मकान मालिक कब और कितना किराया बढ़ा सकते हैं।

किराया बढ़ाने के कानूनी नियम

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भारतीय कानून के अनुसार मकान मालिक अपनी मर्जी से कभी भी किराया नहीं बढ़ा सकते। किराया बढ़ाने के लिए कुछ निर्धारित नियम और प्रक्रियाएं हैं जिनका पालन करना अनिवार्य है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हर राज्य में किराया नियंत्रण के अलग-अलग कानून हैं। इन कानूनों में किराया बढ़ाने की सीमा, समय और प्रक्रिया स्पष्ट रूप से परिभाषित है। यदि कोई मकान मालिक इन नियमों का उल्लंघन करता है तो किराएदार कानूनी कार्रवाई कर सकता है।

मकान मालिक को किराया बढ़ाने से पहले उचित समय पर किराएदार को नोटिस देना आवश्यक होता है। बिना पूर्व सूचना के किराया बढ़ाना कानूनी रूप से गलत माना जाता है। अधिकांश राज्यों में किराया बढ़ाने के लिए कम से कम एक माह का नोटिस देना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त किराया बढ़ाने का ठोस कारण भी होना चाहिए जैसे कि संपत्ति की मरम्मत या सुधार।

किराया समझौते की महत्वपूर्ण शर्तें

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जब आप किसी निश्चित अवधि के लिए घर किराए पर लेते हैं तो एक लिखित समझौता होता है जिसे रेंट एग्रीमेंट कहते हैं। यह समझौता आमतौर पर 11 महीने या एक साल के लिए होता है। इस निर्धारित अवधि के दौरान मकान मालिक किराया नहीं बढ़ा सकते जब तक कि समझौते में किराया वृद्धि का स्पष्ट प्रावधान न हो। यदि एग्रीमेंट में लिखा है कि हर साल 10 प्रतिशत किराया बढ़ेगा तो यह कानूनी रूप से मान्य होगा। लेकिन ऐसी किसी शर्त के अभाव में समझौते की अवधि के दौरान किराया नहीं बढ़ाया जा सकता।

रेंट एग्रीमेंट में सभी नियम और शर्तें स्पष्ट रूप से लिखी होनी चाहिए। इसमें किराए की राशि, भुगतान की तारीख, सिक्योरिटी डिपॉजिट, मरम्मत की जिम्मेदारी और किराया वृद्धि के नियम शामिल होने चाहिए। एक अच्छा रेंट एग्रीमेंट किराएदार और मकान मालिक दोनों के अधिकारों की रक्षा करता है। यदि एग्रीमेंट की अवधि समाप्त हो जाती है तो नया समझौता बनाना आवश्यक होता है।

महाराष्ट्र में किराया नियंत्रण के नियम

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महाराष्ट्र राज्य में 31 मार्च 2000 से महाराष्ट्र किराया नियंत्रण अधिनियम लागू है जो किराएदारों के अधिकारों की सुरक्षा करता है। इस कानून के अनुसार मकान मालिक प्रति वर्ष केवल 4 प्रतिशत तक किराया बढ़ा सकते हैं। यह वृद्धि भी तभी संभव है जब एक साल पूरा हो चुका हो। इससे अधिक किराया बढ़ाना कानूनी रूप से गलत है और किराएदार इसका विरोध कर सकता है। यह नियम मुंबई, पुणे, नागपुर और महाराष्ट्र के सभी शहरों में समान रूप से लागू है।

महाराष्ट्र के कानून में एक विशेष प्रावधान यह भी है कि यदि मकान मालिक ने संपत्ति की मरम्मत या सुधार कराया है तो किराए में अतिरिक्त वृद्धि की जा सकती है। लेकिन यह वृद्धि भी सीमित है और मरम्मत की लागत के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। उदाहरण के लिए यदि मकान मालिक ने 1 लाख रुपये की मरम्मत कराई है तो वह किराए में अधिकतम 15,000 रुपये की वार्षिक वृद्धि कर सकता है। यह नियम किराएदारों को अनुचित किराया वृद्धि से बचाता है।

दिल्ली की किराया नियंत्रण व्यवस्था

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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 2009 का रेंट कंट्रोल एक्ट लागू है जो किराएदारों को विशेष सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून के अनुसार यदि कोई किराएदार लगातार एक ही संपत्ति में रह रहा है तो मकान मालिक सालाना 7 प्रतिशत से अधिक किराया नहीं बढ़ा सकते। यह दर महाराष्ट्र से अधिक है लेकिन फिर भी किराएदारों को अत्यधिक किराया वृद्धि से बचाती है। दिल्ली में प्रॉपर्टी की कीमतें बहुत अधिक हैं इसलिए यह नियम विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

दिल्ली के कानून में यह भी प्रावधान है कि मकान मालिक को किराया बढ़ाने से पहले उचित नोटिस देना होगा। अचानक से किराया बढ़ाना या किराएदार को तुरंत घर छोड़ने को कहना गैरकानूनी है। यदि मकान मालिक ऐसा करते हैं तो किराएदार कोर्ट में शिकायत कर सकता है। दिल्ली में किराया विवादों के लिए विशेष अदालतें भी हैं जो जल्दी न्याय प्रदान करती हैं।

अन्य राज्यों में किराया नियम

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भारत के विभिन्न राज्यों में किराया नियंत्रण के अलग-अलग कानून हैं। पश्चिम बंगाल में किराया बढ़ाने की दर और भी कम है जबकि कर्नाटक और तमिलनाडु में अपने अलग नियम हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य राज्यों में भी किराएदारों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानून बने हुए हैं। सभी राज्यों में एक समान बात यह है कि मकान मालिक मनमानी से किराया नहीं बढ़ा सकते। हर जगह किराया वृद्धि की एक निर्धारित सीमा है और उचित प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है।

कई राज्यों में नए किराया कानून भी बनाए जा रहे हैं जो किराएदारों और मकान मालिकों दोनों के हितों को संतुलित करते हैं। मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित मॉडल टेनेंसी एक्ट भी इसी दिशा में एक कदम है। इस नए कानून का उद्देश्य किराएदारी को और भी पारदर्शी और न्यायसंगत बनाना है।

किराएदारों के लिए सुझाव और सावधानियां

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किराएदारों को सलाह दी जाती है कि वे हमेशा लिखित रेंट एग्रीमेंट बनवाएं और उसमें सभी नियम स्पष्ट रूप से लिखवाएं। किराए की रसीद हमेशा लें और सभी भुगतान का रिकॉर्ड रखें। यदि मकान मालिक अनुचित रूप से किराया बढ़ाने की मांग करें तो तुरंत स्थानीय कानून की जानकारी लें। आवश्यकता पड़ने पर कानूनी सलाह भी ली जा सकती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने अधिकारों के बारे में जानकारी रखें और डरकर मकान मालिक की गलत मांगों को स्वीकार न करें।

Disclaimer

यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। किराया कानून राज्यों के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं और समय-समय पर बदलते रहते हैं। किसी भी कानूनी कार्रवाई से पहले स्थानीय कानून की जांच करें और योग्य वकील से सलाह लें। व्यक्तिगत मामलों में निर्णय लेने से पहले कानूनी विशेषज्ञ की राय अवश्य लें।

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Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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