Tenant Rights: आज के समय में बढ़ती बेरोजगारी के कारण लाखों लोग अपने गांव-शहर छोड़कर काम की तलाश में दूसरे शहरों में जाने को मजबूर हैं। शहरों में रहने की महंगाई और प्रॉपर्टी की बढ़ती कीमतों के कारण अपना घर खरीदना हर किसी के बस की बात नहीं है। इसलिए अधिकांश लोग किराए के मकान में रहने को मजबूर हैं। लेकिन किराए के घर में रहने वाले लोगों को अक्सर मकान मालिकों की मनमानी और परेशानी का सामना करना पड़ता है।
कई बार मकान मालिक अपनी मर्जी से किराया बढ़ा देते हैं या फिर बिना किसी वजह के किराएदारों को परेशान करते हैं। किराया बढ़ाने से लेकर बिजली-पानी की समस्या तक, विभिन्न मुद्दों को लेकर मकान मालिक और किराएदार के बीच विवाद होते रहते हैं। लेकिन बहुत से लोग यह नहीं जानते कि कानून में किराएदारों के अधिकार भी सुरक्षित किए गए हैं। भारतीय कानून के अनुसार किराएदारों के पास पांच मुख्य कानूनी अधिकार हैं जिनका सही उपयोग करके वे मकान मालिक की अनुचित मांगों से बच सकते हैं।
समय सीमा तक आवास की सुरक्षा का अधिकार
रेंट एग्रीमेंट के अनुसार जब मकान मालिक और किराएदार के बीच कानूनी समझौता हो जाता है तो उसमें निर्धारित समय सीमा के दौरान मकान मालिक अपनी मर्जी से किराएदार को घर से नहीं निकाल सकता। यह किराएदारों का सबसे मजबूत कानूनी अधिकार है जो उन्हें आवासीय सुरक्षा प्रदान करता है। अगर किराएदार नियमित रूप से किराया दे रहा है और एग्रीमेंट की सभी शर्तों का पालन कर रहा है तो मकान मालिक उसे बेघर नहीं कर सकता।
हालांकि कुछ विशेष परिस्थितियों में मकान मालिक को किराएदार को नोटिस देने का अधिकार है। यदि किराएदार लगातार दो महीने तक किराया नहीं देता है या मकान मालिक को अपनी प्रॉपर्टी किसी और काम के लिए चाहिए तो वह किराएदार को घर खाली करने के लिए कह सकता है। लेकिन इस स्थिति में भी मकान मालिक को कम से कम 15 दिन पहले लिखित नोटिस देना आवश्यक है। बिना नोटिस के या अचानक से घर खाली करने को कहना कानूनी रूप से गलत है।
मूलभूत सुविधाओं की मांग का अधिकार
किराएदारों का दूसरा महत्वपूर्ण अधिकार यह है कि मकान मालिक बिना पूर्व सूचना के घर का किराया नहीं बढ़ा सकता। किराया बढ़ाने के लिए मकान मालिक को कम से कम 3 महीने पहले किराएदार को लिखित नोटिस देना होगा। अचानक से किराया बढ़ाने की मांग करना या मौखिक सूचना देकर किराया बढ़ाना कानूनी रूप से वैध नहीं है। किराएदार इसका विरोध कर सकता है और पुराने किराए की दर पर ही भुगतान कर सकता है।
इसके अलावा किराेदारों को बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं की मांग करने का पूरा अधिकार है। यदि घर में पानी की आपूर्ति बंद हो जाती है, बिजली की समस्या आती है या अन्य बुनियादी सुविधाओं में कोई खराबी होती है तो मकान मालिक की जिम्मेदारी है कि वह इनका तुरंत समाधान करे। मकान मालिक इन बुनियादी सुविधाओं से इनकार नहीं कर सकता क्योंकि यह किराएदार का मौलिक अधिकार है।
मरम्मत और रखरखाव से संबंधित अधिकार
तीसरा महत्वपूर्ण अधिकार घर की मरम्मत और रखरखाव से जुड़ा है। रेंट एग्रीमेंट के बाद यदि मकान में कोई खराबी आती है जैसे छत से पानी टपकना, दीवारों में दरार आना, प्लंबिंग की समस्या या अन्य संरचनात्मक समस्याएं तो इनकी मरम्मत की जिम्मेदारी मकान मालिक की होती है। यदि मकान मालिक मरम्मत कराने में असमर्थता दिखाता है या टालमटोल करता है तो किराएदार को किराया कम करने की मांग करने का अधिकार है।
यदि मकान मालिक लंबे समय तक मरम्मत नहीं कराता और किराएदार को परेशानी होती रहती है तो किराएदार रेंट अथॉरिटी से संपर्क कर सकता है। रेंट अथॉरिटी एक सरकारी संस्था है जो इस प्रकार के विवादों का समाधान करती है। यह संस्था मध्यस्थता के माध्यम से मकान मालिक और किराएदार के बीच समझौता कराने की कोशिश करती है। अधिकांश मामलों में यहां से उचित समाधान मिल जाता है।
निजता और शांति से रहने का अधिकार
चौथा अधिकार किराएदार की निजता और शांति से संबंधित है। रेंट एग्रीमेंट के बाद मकान मालिक को किराएदार के निजी जीवन में दखलअंदाजी करने का कोई अधिकार नहीं है। मकान मालिक बार-बार किराएदार को परेशान नहीं कर सकता, उसके घर में बिना अनुमति के नहीं आ सकता या उसकी निजी चीजों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। किराएदार के घर में नहीं होने पर मकान मालिक ताला तोड़कर अंदर नहीं जा सकता।
मकान मालिक को किराएदार के सामान को इधर-उधर फेंकने, नुकसान पहुंचाने या किसी भी तरह से परेशान करने का कोई अधिकार नहीं है। यदि मकान मालिक ऐसा करता है तो यह कानूनी अपराध माना जाता है और किराएदार पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकता है। मकान मालिक को यदि कमरे का निरीक्षण करना हो या कोई मरम्मत कराना हो तो पहले किराएदार की अनुमति लेनी होगी और उसे लिखित नोटिस देना होगा।
किराया रसीद पाने का मौलिक अधिकार
पांचवां और अंतिम अधिकार किराया रसीद से संबंधित है। किराएदार को हर महीने किराया देने के बाद मकान मालिक से रसीद लेने का पूरा कानूनी अधिकार है। यह रसीद बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज है क्योंकि यह इस बात का सबूत है कि किराेदार ने नियमित रूप से अपना किराया दिया है। यदि भविष्य में कोई कानूनी विवाद होता है तो यह रसीद अदालत में सबूत के रूप में पेश की जा सकती है।
मकान मालिक किराया रसीद देने से मना नहीं कर सकता क्योंकि यह किराएदार का कानूनी अधिकार है। रसीद में किराएदार का नाम, मकान का पूरा पता, किराया की राशि और भुगतान की तारीख स्पष्ट रूप से लिखी होनी चाहिए। डिजिटल भुगतान के मामले में ट्रांजेक्शन की रसीद या स्क्रीनशॉट भी वैध सबूत माना जाता है। यदि मकान मालिक समय से पहले किराएदार को घर से निकालने की कोशिश करता है तो ये रसीदें कोर्ट में किराएदार के पक्ष में मजबूत सबूत बन सकती हैं।
यह भी जरूरी है कि यदि मकान मालिक को किराएदार के कमरे में कोई मरम्मत करानी हो तो उसे लिखित नोटिस देकर पहले से सूचित करना होगा। अचानक से आकर काम शुरू करना या बिना बताए मरम्मत कराना गलत है। किराएदार की सहमति और उचित समय की सूचना देना आवश्यक है।
Disclaimer
यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। किराया संबंधी कानून राज्य के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। किसी भी कानूनी विवाद की स्थिति में योग्य वकील से सलाह लेना आवश्यक है। स्थानीय रेंट कंट्रोल एक्ट की जानकारी प्राप्त करना उचित होगा।